वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१२ अक्टूबर, २०१४<br />ए. के. जी. इ. सी, गाजियाबाद<br /><br />साधो ये मुरदों का गांव!<br />पीर मरे, पैगम्बर मरि हैं,<br />मरि हैं ज़िन्दा जोगी,<br />राजा मरि हैं, परजा मरि हैं,<br />मरि हैं बैद और रोगी।<br />साधो ये मुरदों का गांव!<br />चंदा मरि है, सूरज मरि है,<br />मरि हैं धरणी आकासा,<br />चौदह भुवन के चौधरी मरि हैं<br />इन्हूँ की का आसा।<br />साधो ये मुरदों का गांव!<br />नौहूँ मरि हैं, दसहुँ मरि हैं,<br />मरि हैं सहज अठ्ठासी,<br />तैंतीस कोटि देवता मरि हैं,<br />बड़ी काल की बाज़ी।<br />साधो ये मुरदों का गांव!<br />नाम अनाम अनंत रहत है,<br />दूजा तत्व न होइ,<br />कहे कबीर सुनो भाई साधो<br />भटक मरो मत कोई।<br /><br />~ संत कबीर<br /><br />प्रसंग:<br />"साधो ये मुरदों का गाँव" गुरु कबीर ऐसा क्यों बोल रहें है?<br />मरि हैं सहज अठ्ठासी, तैंतीस कोटि देवता मरि हैं ऐसा क्यों बोला जा रहा है?<br />जीवन माने क्या?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते